पॉलिसैकेराइड्स (Polysaccharides)
सामान्य जानकरी (General Introduction)
जो कार्बोहाइड्रेट जल- अपघटित करने पर मोनोसैकेराइड्स के अणुओं की एक बड़ी संख्या(10 से अधिक) देती है पॉलिसैकेराइड्स कहलाती है।
पॉलिसैकेराइड्स का सामान्य सूत्र (C6H10O5)n होता है। Starch, Cellulose, Hemicellulose तथा Lignin आदि कुछ पॉलिसैकेराइड्स हैं।
पॉलिसैकेराइड्स स्वाद में मीठे नहीं होते हैं इसलिए इन्हें Nonsugar कहते हैं।
पॉलिसैकेराइड्स अक्रिस्टलीय एवं जल में अविलेय तथा बहुत कम विलेय ठोस पदार्थ होते है।
कुछ मुख्य पॉलिसैकेराइड्स निम्नलिखित है-
(a) इनूलिन (Inulin)
(b) मण्ङ (Starch)
(c) ग्लाइकोजन (Glycogen)
(d) सेलुलोस (Cellulose)
(e) पेक्टिन (Pectin)
(f) गम और म्यूसिलेज (Gum and Mucilage)
इनूलिन (Inulin)
यह कुछ पौधों के कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) मेें पाया जाता है। Dahlia की जड़ के Section को Alcohol या Glycerine में डालकर कुछ समय तक रखने पर जड़ की कोशिकाओं में यह पंखों के आकार की रवे बना लेता है।
मण्ङ (Starch)
यह जल में अघुलनशील होता है। यह संचित भोजन का सबसे अधिक महत्वपूर्ण कण है। मण्ड के कण पौधे के सभी भागों में मिलते हैं, यद्यपि यह पौधों के संग्रह करने वाले भागों बीज, फलों इत्यादि में अधिकतर पाए जाते है। मण्ड दो प्रकार के होती हैं-
- अस्थायी स्टार्च- ये दिन के समय प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में बनते हें तथा रात्रि में फिर से Sugar में बदल जाते हैं।
- स्थायी स्टार्च - आवश्कता से अधिक Sugar स्थायी मण्ड में बदल जाती है। यह अधिकतर भूमिगत तनों,जड़ों ,बीजों व फलों में पाया जाता है।
मंड कणों में C6H10O5 का बहुलक(Polymer) होता है। अधिकतर मण्ड कण दो संरचनात्मक रूपों में पाए जाते हैं जिनमें एक ऐमीलोस(Amylose) और दूसरा ऐमीलोपेक्टिन(Amylopectin) कहलाता है।
ऐमीलोस मण्ड कण के केंद्रीय भाग में रहता है और इसके चारों ओर ऐमीलोपेक्टिन का एक घेरा होता है।
मण्ड के आकर व रचना भिन्न भिन्न होते हैं। प्रत्येक मण्ड कण में एक चमकदार रचना होती है जिसे
कहते है। इसी स्थान से मण्ड कण का बनना आरम्भ होता है। हाइलम की विभिन्न दिशाओं में मण्ड की परतें बननी आरम्भ हो जाती है,जिन्हे स्तर-विन्यास (Stratification) कहते हैं।
इनको दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- उत्केंद्री (Eccentric) कण
- संकेन्द्री (Concentric) कण
- उत्केंद्री (Eccentric) कण - इसमें हाइलम एक किनारे से निकलता है जिससे बनने वाले मण्ड की परतें सामान नहीं होती है। जैसे-आलू के कंद में(see in picture)
- संकेन्द्री (Concentric) कण - इसमें हाइलम मध्य में होता है और इसके चारों और Stratification होता है। जैसे -गेंहू ,मक्का आदि। जिन कण में एक हाइलम होता है उसे सरल मण्ड कण (Simple Starch Grain) कहते हैं जैसे -आलू ,गेंहू ,मक्का। तथा जिसमें एक से अधिक हाइलम होते है उसे संयुक्त मण्ड कण (Compound Starch Grain) कहते हैं। जैसे -केला ,जई आदि।
मण्ड के जलीय अपघटन, जो कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न Enzymes द्वारा या खनिज अम्लों द्वारा प्रभावित होता है, से glucose बनता है। मण्ड, आयोडीन के घोल में नीला काला रंग देता है।
ग्लाइकोजन (Glycogen)-
यह भी एक अघुलनशील कार्बोहाइड्रेट हैं। यह जंतुओं, नीली-हरी शैवाल, कवकों तथा जीवाणुओं आदि में पाया जाता हैं। इसका रासायनिक सूत्र (C6H10O5)n है।
सेलुलोस (Cellulose)
यह कोशिका भित्ति में पाया जाता है। मनुष्य इसका पाचन नहीं कर पाता।
पेक्टिन (Pectin)
दो पास की कोशिकाओं को परस्पर बांधने वाली मध्य पटलिका(Middle Lamella), Pectin की बनी होती है। यह जल का अवशोषण सरलता से करती है अतः यह कोशिका की जल सोखने की शक्ति को बढ़ाती है जिस कारण इसका प्रयोग खाने की जेली तथा मुरब्बे के रूप में किया जाता है। कवकों की कोशिका भित्ति,उप त्वचा(Cuticle) तथा कीटों का बाह्य कंकाल पेक्टिन का बना होता है।
गम और म्यूसिलेज (Gum and Mucilage)
यह बहुत से पौधों में पाए जाने वाला जल में घुलनशील पदार्थ होता है, जो भीगकर एक चिकने व चिपचिपे पदार्थ के रूप में परिवर्तित हो जाता है। यह जल को बांधने, जल को शीघ्र ना उड़ने देने और बीजों के वितरण में योगदान करता है।
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