लाइसोसोम(Lysosomes):General Introduction,Structure,Origin,function|hindi


 लाइसोसोम (Lysosomes)

• लाइसोसोम की खोज सर्वप्रथम De Duve ने सन् 1955 में की थी जिसके लिए उन्हें 1974 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

• लाइसोसोम जंतुओं की कोशिकाओं में निश्चित रूप से पाया जाता है लेकिन पौधों की कोशिकाओं में इनकी उपस्थिति के उदाहरण कम ही मिलते हैं। सन 1964 में P. Matile ने  न्यूरोस्पोरा नामक कवक में इनकी उपस्थिति सिद्ध की।


लाइसोसोम की संरचना  (Structure of Lysosomes)
  • यह 0.25-0.50  व्यास की लगभग गोलाकार की एक परत  वाली झिल्लियों(single layered membrane) से घिरी थैलियां होती हैं। इनमें विभिन्न प्रकृति के लगभग 30-35 जल अपघटन विकर(Hydrolytic Enzymes) पाए जाते हैं।

लाइसोसोम(Lysosomes):General Introduction,Structure,Origin,function|hindi
लाइसोसोम 



  • लाइसोसोम में पाए जाने वाले सभी विकरों की क्रियाशीलता अम्लीय pH(acidic pH) पर अधिक रहती हैं। लाइसोसोम द्रव्य की pH लगभग 5 होती है जो कि कोशिका द्रव्य की pH से कम (pH 7.2) हैं।
  • Polysaccharides, Nucleic Acids एंव protein का पाचन लाइसोसोम में पाए जाने वाले विकरों  द्वारा ही होता हैं।

लाइसोसोम  का उद्गम (Origin of Lysosomes)
  • लाइसोसोम गाॅल्जी काय की थैलियों(Vesicles) अथवा ER नलिकाओं(Tubules) से बनती हैं। Golgi Bodies अथवा ER से बने ये लाइसोसोम प्राथमिक लाइसोसोम (Primary Lysosomes) कहलाते हैं।
  • ये एण्डोसाइटोसिस(Endocytosis) द्वारा लिए भोजन का पाचन करते हैं। जब भोजन से भरी थैली (जो एण्डोसाइटोसिस द्वारा बनी हो) एक प्राथमिक लाइसोसोम में एकरूप (Fuse) हो जाती है तो एक द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosomes) बनता है। भोजन से भरी थैली के सभी पदार्थ द्वितीयक लाइसोसोम में पाए जाने वाले विकरों द्वारा पचा लिए जाते हैं।
  • पचे हुए पदार्थ लाइसोसोम की कला से बाहर निकलकर कोशिका (Cell) के शेष भागों द्वारा अपने प्रयोग में ले लिये जाते है।
लाइसोसोम(Lysosomes):General Introduction,Structure,Origin,function|hindi
विभिन्न प्रकार के लाइसोसोम और उनके उद्गम का निरूपण 

  • इस प्रकार प्रयोग में आए द्वितीयक लाइसोसोम, जीवद्रव्य कला की ओर जाकर उसमें विलेय हो जाते हैं और इसके अवशेष एक्सोसाइटोसिस(Exocoytosis) द्वारा कोशिका से बाहर निकल जाते हैं।  यह विभागीकरण(Compartmentalisation) कोशिका के लिए अच्छा हैं, क्योंकि यद्यपि लाइसोसोम के पाचक विकर(Digestive Enzymes) कोशिकाद्रव्य व उसमें स्थित कोशिकांगों को नष्ट कर सकते थे, परन्तु इस प्रकार से Digestive Enzymes लाइसोसोम में रहते हैं और उससे बाहर नहीं निकल पाते। उनके द्वारा पाचन किए जाने वाले पदार्थ एक थैली में बंद उनके पास ही लाए जाते हैं और ये थैली लाइसोसोम से एकरूप हो जाती है। इस प्रकार पाचन द्वारा उत्पन्न लाभकारी पदार्थ लाइसोसोम से बाहर निकल आते हैं तथा लाइसोसोम में स्थित सभी विकर तथा वे उत्पाद जो कोशिका के काम नहीं आते कोशिका से बाहर निकल जाती है।
  • कभी-कभी लाइसोसोम से इन पाचक Enzymes के बाहर निकलना लाभकारी हो सकता है, जैसे- मेंढक के लार्वा में पूँछ होती हैं परन्तु पूर्ण विकसित मेंढ़क में पूँछ नहीं होती। वास्तव में पूँछ में स्थित सभी जटिल रचना वाले रासायनिक पदार्थों का लाइसोसोम में पाए जाने वाले Enzymes द्वारा पाचन होकर छोटे सरल रासायनिक पदार्थों में विभाजन हो जाता हैं जो पूँछ से मेंढक के विकसित होते शरीर में चले जाते हैं तथा वहाँ पर फिर जटिल रासायनिक पदार्थ बनाने में काम आ जाए हैं। इसे पूँछ का प्रतीय गमन (Regression of Tail) कहते हैं।
  • इसी प्रकार रक्त कोशिकाओं का भी जीवन काल होता है।नई रक्त कोशिकाएँ बनती रहती हैं और पुरानी रक्त कोशिकाएँ जो लाभकारी नहीं होती है नष्ट होती रहती हैं। यह नष्टीकरण(Destruction) भी लाइसोसोम द्वारा होता हैं।इस प्रकार म्यूकस एवं बाह्य रचना की वे कोशिकाएँ को लाभकारी नहीं होती लाइसोसोम द्वारा नष्ट हो जाती है।निम्न विवरण द्वारा यह सिद्ध होता हैं कि लाइसोसोम में सबसे अधिक बहुरूपता (Polymorphism) पाई जाती है।
  • लाइसोसोम में बहुत से Enzymes पाए जाते हैं लगभग 400 या अधिक प्रकार के। यह सभी अम्लीय अपघटक कहलाते हैं क्योंकि इनमें से अधिकांश एंजाइम्स अम्ल की उपस्थिति में अधिक सक्रिय होते हैं।लाइसोसोम की सरल रासायनिक परिभाषा 'अम्लीय अपघट्य की अधिकता वाली रचना' के रूप में की जा सकती है।जब किसी कारण से यह एंजाइम बाहर निकलते हैं तो सक्रिय होकर कोशिका के विभिन्न पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट ,प्रोटीन ,डीएनए व आर एन ए आदि का विघटन कर देते हैं और कोशिका भी विखंडित हो जाती है इसी कारण लाइसोसोम को "आत्मघाती थैली" कहा गया है।
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लाइसोसोम में पाए जाने वाले विभिन्न एंजाइम एवं लाइसोसोम का विघटन 


लाइसोसोम के कार्य (Function of Lysosomes)
लाइसोसोम के कई कार्य होते हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार है–

1. कोशिका बाह्य पदार्थों का पाचन(Digestion of Extracellular Material )– कोशिका में एण्डोसाइटोसिस द्वारा लाए गए प्रोटीन तथा अन्य पदार्थों का पाचन होता है। पचे हुए कण एक झिल्ली द्वारा ढक लिए जाते हैं और यह रचना फैगोसोम (Phagosome) कहलाती है।

अब फैगोसोम,प्राथमिक लाइसोसोम (Primary Lysosomes) की ओर बढ़ता है और अंत में दोनों मिलकर एक हो जाते हैं (द्वितीयक लाइसोसोम)। यहां पर फैगोसोम द्वारा लाए गए कणों का पाचन लाइसोसोम के एंजाइम्स करते हैं।

एंजाइम द्वारा पाचन के पश्चात पचा हुआ पदार्थ विसरण द्वारा कोशिका के काचाभद्रव्य(Hyaloplasm) में चला जाता है और लाइसोसोम अवशिष्ठ काय ( तृतीयक लाइसोसोम) के रूप में कोशिकाद्रव्य में रह जाता है।
हो सकता है यह बहुत समय तक कोशिका में ही रहे लेकिन अंत में इनको उत्क्रम फगोसाइटोसिस (Reverse Phagocytosis) द्वारा कोशिका से बाहर निकाल दिया जाता है।अमीबा द्वारा भोजन ग्रहण करना तथा कशेरुकाओं में सफेद रक्त कणिकाओं द्वारा भक्षण की क्रिया इस प्रकार के उदाहरण है। 

2. अंतः कोशिकी पाचन(Intracellular Digestion)– भोजन की कमी के समय लाइसोसोम साइटोप्लाज्म में स्थित प्रोटीन, लिपिड तथा कार्बोहाइड्रेट का पाचन करता है।

3. स्वनष्टीकरण या आत्मलयन(Autolysis)– रोग की अवस्था में लाइसोसोम कई कोशिकाओं को नष्ट कर देता है।

4. कोशिका विभाजन में सहायता(Trigger of cell division)– कोशिका विभाजन के समय कोशिका की परिधि पर कुछ लाइसोसोम पाए जाते हैं वैज्ञानिक मानते हैं कि जैसे ही लाइसोसोम सकते हैं तभी कोशिका में सूत्री विभाजन आरंभ हो जाता है।




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